भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र नि:संदेह रूप से अपार क्षमताओं तथा संभावनाओं से परिपूर्ण भूमि है। इस क्षेत्र के हर कोने में आश्चर्य विद्यमान हैं। यहां के लोग अपनी समृद्ध संस्कृतिक विरासत के साथ इस क्षेत्र को अति असाधारण बना देते हैं। हथकरघा तथा हस्तशिल्प इस क्षेत्र के स्वदेशी लोगों की जीवन-शैली के अभिन्न अंग हैं। दस्तकारी युक्त सामान तथा जादुयी बुनकर जो न सिर्फ अपने उपयोग के लिए इनका सृजन करते हैं, बल्कि ये क्षेत्र में फैले असंख्य शिल्पियों के रोजी-रोटी के साधन बने हुए हैं। बदलते वक्त की धारा में इन बहुमूल्य पारंपरिक कौशलता को बनाए रखने के लिए जरूरत है इनके संरक्षण तथा प्रोन्नत बनाए रखने की।